Sunday, 30 January 2022

HD Method

                            HYPOTHETICO DEDUCTIVE METHOD

  HDM involves a two tier system of hypothesis (Trotta, et., al., 2013). A more general hypothesis is hierarchically created at the higher level to explain certain set of observational data. At the second level in the hierarchy there are one or more hypothesis that are deductively created as consequences considering the hypothesis at level one to be true. These deductively arrived consequences are subjected to further observation and experimentation to verify them. The validity of the tier I hypothesis depends upon the verification of tier II hypothesis. Thus we can say that HDM involve a system of hypothesis.

    In a nutshell the method can be represented as follows:

a. Hypothesising

Scientists faced with some explanation problem, makes a bold gesture and proposes a hypothesis as a tentative explanation for some set of observational data. 

b. Deduction

The hypothesis is taken as a truth premise and following deductive reasoning, the scientist make certain predictions. These predictions are logical consequences if the tier I hypothesis is taken to be true. The predictions are themselves hypothetical statements (Tier II). The tier II hypothesis or the predictions or consequences emanating from tier I hypothesis are more specific.

c. Observation

The tier II hypothesis are empirically tested I.e. the consequences deduced need to be examined against the real world processes. The observational data decides the fate of the tier I hypothesis- whether it is to be accepted as a theory, modified or discarded. 
The three phase scientific method is termed as the Hypothetico-deductive method (HDM) that shows the hypothetical nature of SM. 

    The general pattern of reasoning goes like this.

H is……………………………………………………..lHypothesis/Creative phase
If H (hypothesis) then P (predictions)……………..Deduction phase
P is……………………………………………………..Observation/Testing Phase
Therefore H……………………………………………Conclusion

Sunday, 9 January 2022

What is a Discipline

डिसिप्लिन: अर्थ

    डिसिप्लिन शब्द उत्पत्ति लैटिन शब्द डिसिपुलस(discipulus) से है जिसका तात्पर्य होता है शिक्षार्थी। कुछ अन्य लोगों का मानना है कि इसकी उत्पत्ति लैटिन शब्द डिसिप्लीनिया (disciplinia ) से है जिसका तात्पर्य है शिक्षण। अत व्युत्पत्तिशास्त्र के आधार पर डिसिप्लिन शब्द का अर्थ विद्यार्थियों अथवा शिक्षण होता है।

डिसिप्लिन : परिभाषा


साधारण तौर पर डिसिप्लिन को मानव ज्ञान के सम्पूर्ण पुरालेख अथवा भण्डार के एक वर्ग के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।  मानव सभ्यता द्वारा अर्जित ज्ञान के सम्पूर्णता को सम्प्रेषण (communication ), प्रबंधन (management ) एवं आशोधन और विकाश (refinement and development)  हेतु कुछ निश्चित मानकों के सापेक्ष वर्गीकृत किया गया है एवं इस वर्गीकरण के फलस्वरूप प्राप्त ज्ञान के विशेष वर्ग को ही डिस्कॉपलीलीने कहा जाता है। 


ज्ञान वर्गीकरण के  आधार


ज्ञानं के किसी वर्ग को डिसिप्लिन के रूप में स्थापित होने  के लिए यह आवश्यक है की ज्ञान का वह वर्ग या प्रणाली डिसिप्लिन के प्रकृति के अनुरूप कुछ शर्तों को पूरा करता हो। आवश्यक शर्तें जो डिसिप्लिन के प्रकृति को स्पष्ट करती है वो हैं 
  1. ज्ञान के क्षेत्र एवं विषय वास्तु की विशिष्टता (
  2. ज्ञानोपार्जन विधियों की विशिष्टता। 
  3. ज्ञान के विशेष क्षेत्र में व्यापक समस्याओं अथवा सरोकारों की वंशावली। 
  4. क्षेत्र विशेष में स्थापित एवं अनुमोदित बुद्धिजीवियों का समुदाय

विषयवस्तु/क्षेत्र  विशिष्टता



ज्ञान के कई स्वरूप होते हैं जैसे कि तथ्य (facts), संप्रत्य (concepts), अंतर्संबंध (relationships), परिकल्पना (hypothesis), सिद्धांत (theory),इत्यादि।ज्ञान के ये विभिन्न स्वरूप मिलकर किसी डिसिप्लिन के ढांचे को प्रस्तुत करते हैं। अत किसी डिसिप्लिन का संरचना उस डिसिप्लिन के विशिष्ट तथ्यों, संप्रत्यायो, सिद्धांतों इत्यादि के द्वारा निर्मित होता है। 

द्वितीय ज्ञान संरचना उस सिद्धांत  की भी अभिव्यक्ति होती है जिसे आधार बनाकर डिसिप्लिन के विशिष्ट ज्ञान स्वरूपों को संगठित किया जाता है।  उदहारण के लिए विज्ञान में ज्ञान संगठन का आधार कारण-प्रभाव सिद्धांत होता है वहीँ इतिहास विषय को देखें तो उसमें संगठनात्मक सिद्धांत  के रूप में कालकरंबढ़त  अपनाया जाता है।

अंतत डिसिप्लिन का ज्ञान संरचना उस डिसिप्लिन के धातुभाषा (metalanguage) जो कि प्रत्येक डिसिप्लिन के लिए विशिष्ट होता है, को  भी प्रस्तुत करता है। 

2. डिसिप्लिन तथा अन्वेषण विशिष्टता

   
डिसिप्लिन ज्ञान का एक  गत्यात्मक (dynamic) प्रणाली होता। है डिसिप्लिन में वर्गीकृत ज्ञान स्थिर नहीं होता है।  डिसिप्लिन में नित्य ज्ञान का परिमार्जन एवं नए ज्ञान का संवर्धन होता रहता है। अत:  डिसिप्लिन मात्र ज्ञान रुपी उत्पाद को प्रस्तुत नहीं करता है अपितु यह ज्ञान संवर्धन और ज्ञान आशोधन सम्बंधित प्रक्रिया का भी द्योतक होस्वरूप ता है। यहां डिसिप्लिन का प्रक्रियात्मक पक्ष उस डिसिप्लिन में ज्ञान सम्बंधित अन्वेषण विधि को प्रतिबिम्बित करता है। प्रत्येक कईडिसिप्लिन में अन्वेषण की अपनी विधि होती है जो उस डिसिप्लिन की विशिष्टता होती है एवं उसे अन्य डिसिप्लिन से भिन्न बनाता है। 

किसी डिसिप्लिन का अन्वेषण अथवा शोध विधि उस डिसिप्लिन में मान्य चिंतन परंपरा और तर्क प्रणाली को व्यक्त करता है । चिंतन के इस परंपरा तथा तर्क के इस प्रणाली को मूल्य के रुप मे उस डिसिप्लिन से संबंधित समुदाय  द्वारा स्वीकार किया जाता है।  इन्हीं मूल्यों के आधार पर डिसिप्लिन संबंधित समुदाय ज्ञान की विवेचना करते हैं तथा ज्ञान के वैद्यता संबंधित निर्णय लेते हैं।

3. डिसिप्लिन तथा समस्याओं की काळक्रमबद्धता  


 डिसिप्लिन के दो पक्ष होते हैं। प्रथम यह उत्पाद स्वरुप ज्ञान को परिलक्षित करता है तथा साथ साथ प्रक्रिया स्वरुप ज्ञान-सृजन एवं ज्ञान-संवर्धन की  विधि को भी प्रस्तुत करता है। किसी कालखंड में डिसिप्लिन के समक्ष कुछ व्यापक प्रश्न अथवा समस्याएँ  होती हैं एवं सम्बंधित समुदाय डिसिप्लिन-विशेष की विधि के अनुरूप उस समस्या  का समाधान ढूंढते हैं। इस प्रक्रिया में  नए ज्ञान का  सृजन होता है और स्थापित ज्ञान का संवर्धन होता है। 

परन्तु किसी एक कालखंड में शोध  समस्याएं अथवा प्रश्न किसी दुसरे कालखंड के शोध समस्याओं से स्वतंत्र अथवा पूर्णतया पृथक नहीं होते  हैं।  अपितु किसी विशेष काल  की समस्याएं ज्ञान रुपी नए समा रूपधान  प्रस्तुत करते हैं और इस नए ज्ञान से पुन: नयी समस्याएं और नए प्रश्न उत्पन्न होते हैं और यह प्रक्रिया इस प्रकार चलती रहती। है।

निष्कर्षत: विभिन्न काल खंड में डिसिप्लिन के व्यापक समस्याओं में एक काळक्रमबद्धता परिलक्षित होता है। डिसिप्लिन की यह  काळक्रमबद्धता डिसिप्लिन को निरंतरता (continuity) प्रदान करती है और प्रश्नों के इस काळक्रमबद्धता के कारण डिसिप्लिन के विभिन्न  पीढ़ियों में अन्तर्सम्बन्ध स्थापित होता है। 

4.समुदाय के रूप में डिसिप्लिन


कोई भी स्वीकृत डिसिप्लिन किसी क्षेत्र विशेष में संलग्न बुद्धजीवियों के समुदाय का प्रतिनिधित्व करता है जिनमे कुछ साझा लक्ष्य होते हैं, ज्ञानार्जन के किसी विशेष ओआरम्परा से सम्बद्ध होते हैं तथा उनके अपने साँझ मूल्य होते हैं जो उनकी गतिविधियों और क्रियाकलापों को मार्गदर्शित करता है। दूसरे शब्दों में दिससीओलिने एक ऐसे समुदाय को व्यक्त करता है जिनकी सोच तथा कार्यप्रणाली डिसिप्लिन के संप्रत्यात्मक संरचम और चिंतन के विशेष परंपरा में अनुशाषित हो।

संक्षेप में कहा जा सकता है कि:

*  डिसिप्लिन मानव सभ्यता द्वारा अर्जित एवं संचयित ज्ञान के वर्गीकरण से उत्पन्न एक वर्ग होता है।

* डिसिप्लिन के दो महत्वपूर्ण पक्ष होते हैं - ज्ञान संरचना तथा ज्ञानार्जन की विधि जी मिलकर किसी डिसिप्लिन को विशिष्टता प्रदान करते हैं, उसके स्वभाव को वर्णित करता हैं तथा उसे अन्य डिसिप्लिन से भिन्न करते हैं। 

* ज्ञान के एक वर्ग के रूप में प्रत्येक डिसिप्लिन के मूल में क्षेत्र विशेष से संबंधित ज्ञान की एक प्रणाली/संरचना होती है जो कि उस क्षेत्र विशेष के घटनाओं तथा प्रक्रियाओं को समझने में (comprehend), उसकी व्याख्या करने में (explaination)  और उसका अनुमान लगाने में  (prediction) सहायक होती है। 

* प्रत्येक डिसिप्लिन की  ज्ञान संबंधित  अपनी विशिष्ट मान्यताएं होती हैं जो उस डिसिप्लिन के शोध कार्यों को दिशानिर्देशित करते हैं और शोध परिणामों के मूल्यांकन हेतु आधार प्रदान करते हैं। 

* ज्ञान के किसी क्षेत्र को डिसिप्लिन का दर्जा प्राप्त होने के लिए उपरोक्त दोनों ही शर्तों का पूरा होना अनिवार्य होता है।
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