Sunday, 24 April 2022

आलोचनात्मक शिक्षण (Critical Pedagogy)

आलोचनात्मक शिक्षण


     प्रस्तावना

 शिक्षा में उच्च आकांक्षा रखने वाले परीक्षा प्रणाली का ट्रेंड वर्तमान में पुनः एक बार हावी है. उच्च आकांछा परीक्षण प्रणाली से तात्पर्य उस प्रणाली से है जिसमे निर्धारित अधिगम उद्देश्यों के द्वारा सीमित दायरे में ही शिक्षण कार्य को पूरा किया जाता है एवं अनुशासित ढंग से उन्हीं उद्देश्यों को आधार बनाते हुए परीक्षण किया जाता है. इस प्रकार के परीक्षणों का अपना अलग महत्त्व है. यह निश्चित तौर पर शिक्षा  एवं परिक्षण कार्यक्रमों को व्यवस्थित करता है एवं उसे वस्तुनिष्ठ बनता है. परन्तु इस प्रणाली की अपनी कमियां भी है. सर्वप्रथम यह विद्यार्थियों में स्मृति आधारित मानसिक प्रक्रियाओं को अधिक प्रोत्साहित करता है जिससे की विद्यार्थी परीक्षा में उच्च अंक प्राप्त कर सकें. विद्यार्थियों द्वारा प्राप्त किये जाने वाले अंकों को ही शिक्षा के गुणवत्ता का प्रमाण मान लिया जाता है. वहीँ दूसरी ओर  शैक्षिक उद्देश्यों के निर्धारण की प्रक्रिया में समर्थवॉन एवं इस प्रक्रिया के लिए उत्तरदायी व्यक्तियों की अपनी सोच एवं हित  उनके निर्णयों को प्रभावित करते हैं. अक्सर इस प्रकार की शिक्षा व्यवस्था संरक्षणवादी शिक्षा का रूप ले लेती है और विद्यार्थी उच्च कोटि के मानसिक विकास से वंचित रह जाते हैं. विद्यार्थियों को वस्तुस्थिति को स्वयं से समझने परखने और विवेचित करने का अवसर नहीं मिल पता है. शिक्षा के इन कमियों को दूर करने के लिए फ्रेरे ने आलोचनात्मक शिक्षण के अवधारणा को प्रस्तुत किया था. 


       फ्रेरे का मानना था कि  ज्ञान अथवा विचारों अथवा सामजिक रीतियां और नियम को गैर आलोचनात्मक ढंग से स्वीकार कर लेना ही समाज में एक समूह के द्वारा दुसरे समूह के उत्पीड़न एवं वंचित रखने का कारण बनता है. सभी प्रकार के उत्पीड़न के मूल में मौन स्वीकारोक्ति की संस्कृति है. अपने समय के शिक्षा व्यवस्था को वे इस मौन संस्कृति को विकसित करने के माध्यम और सामजिक बुराइयों के स्त्रोत के रूप में देखते थे.  

      

       फ्रेरे शिक्षा के प्रचलित व्यवस्था को “शिक्षा की बैंकिंग प्रणाली” के नाम से उद्बोधित करते हुए कहते हैं की इस प्रकार की शिक्षा ज्ञान-स्थानांतरण के सिद्धांत पर आधारित होता है एवं यह स्मृति आधारित अधिगम  को बढ़ावा देता है. फ्रेरे के अनुसार इस प्रकार की शिक्षा ज्ञान के सृजन को हतोत्साहित करते हुए विद्यार्थियों के सामाजिक एवं मानसिक विकास को अवरूद्ध करता है. अत इस प्रकार के शिक्षा द्वारा मौन रहने की संस्कृति का पोषण होता है तथा कालांतर में वही विद्यार्थी या तो इस तथ्य से ही अनभिज्ञ रह जाता है कि  उसके अधिकारों का हनन हुआ है अथवा ज्ञात होने पर भी वे मौन रह जाते हैं. शिक्षा सामजिक श्रेणीबद्धता में सामर्थ्य एवं उच्च श्रेणी के लोगों द्वारा उत्पीड़न एवं वंचन का माध्यम बनकर रह जाता है. इस प्रकार के शिक्षा के विपरीत उन्होंने आलोचनात्मक शिक्षण के सम्प्रत्य को प्रस्तुत किया.


आलोचनात्मक शिक्षण 

          फ्रेरे के अनुसार आलोचनात्मक शिक्षण शिक्षा का एक समालोचनात्मक उपागम है जिसमे विद्यार्थी सक्रीय रूप से अधिगम प्रक्रिया में संलग्न होते हैं एवं विषयवस्तु सम्बंधित स्वयं के विचारों एवं परिप्रेक्ष्यों को प्रस्तुत करने, विश्लेषित करने एवं निर्णय लेने के लिए स्ववतंत्र होते हैं. इस प्रकार की शिक्षा शिक्षक-विद्यार्थी के मध्य संवाद (dialogue) तथा विद्यार्थियों द्वारा समस्या प्रस्तुतीकरण  में संलग्नता (problem  posing ) के माध्यम से प्राप्त करने की वकालत की जाती है. विद्यार्थियों को शिक्षा के वस्तु  के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. अपितु उन्हे स्वतंत्र चिंतन करने वाले एवं अपने स्वतंत्रता के मार्ग को स्वयं चुनने के क्षमताओं  वाले एक व्यक्ति के रूप में देखने  की वकालत की जाती है. 

इस प्रकार के व्यक्तित्व के विकास के लिए आलोचनात्मक शिक्षण प्रणाली उपयुक्त है. यह उन्हें प्रश्न करने, संवाद करने, अपने परिप्रेक्ष्यों को व्यक्त करने के कैशलों से युक्त करता है. यह विद्यार्थियों में सामाजिक परिवर्तन लाने की क्षमता को विकसित कर सकता है.


    इस उपागम के दो महत्वपूर्ण विधाएँ हैं: 


समस्या खड़ा करना (Problem -posing ) 


इस विधि में कक्षा में विद्यार्थियों को प्रश्न करने एवं अपने प्रश्नों को प्रस्तुत करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. इसके उपरान्त मानसिक उद्वेलन (Brain-Storming) द्वारा प्रारम्भिक समाधान विद्यार्थियों के द्वारा प्रस्तुत किया जाता है. इन प्रारम्भिक उपायों पर सामूहिक संवाद द्वारा उसे और परिष्कृत कर एक सर्वसम्मत समाधान को निर्मित किया जाता है. 


संवाद (Dialogue )


यह अति प्राचीन विधा है जिसका प्रारम्भ पश्चिम  में सुकरात से माना जाता है. इस विधा में संवाद को महत्त्व दिया जाता है जो शिक्षक एवं विद्यार्थियों के  मध्य एक दुसरे पर आस्था रखते हुए संपन्न किया जाता है. इसके द्वारा विद्यार्थी आलोचनात्मक ढंग से ज्ञान के साथ अंतर्क्रिया कर सकते है एवं उसे अपने जीवन के यथार्थ के साथ जोड़ते हुए होने परिप्रेक्ष्य को प्रस्तुत कर सकते हैं. वहीँ दूसरी और विद्यार्थी अन्य विद्यार्थियों के पाइपरएकशय को भी समझ सकते हैं. 


इन दोनों विधाओं के माध्यम से विद्यार्थियों में उच्च श्रेणी के चिंतन कौशलों का विकास किया जाता है. मौन रहने की संस्कृति ही उत्पीड़न एवं वंचन का मूल स्त्रोत है एवं आलोचनात्मक शिक्षण के द्वारा विद्यार्थियों में प्रश्न पूछने, अपनी बातों को तार्किक ढंग से रखने, दूसरों के परिप्रेक्ष्य को समाहित  करने के कौशलों को विकसित कर सकते हैं जो अंतत उनमे आलोचनात्मक चिंतन के कौशल को विकसित कर सकता है. 



निष्कर्ष 

शिक्षा में मतारोपण का बढ़ता प्रभाव शिक्षा के वास्तविक उद्देश्य के लिए एक गंभीर समस्या है. शिक्षा के सैंडस्रभ में फ्रेरे द्वारा प्रस्तुत की गयी आलोचनाएं समीचीन हैं. विशेषकर उभरते ज्ञान आधारित समाज एवं अर्थ व्यवस्था में शिक्षा स्वयं पृथक्कीकरण का कारण बन सकता है. यदि हम भावी समाज हेतु जागरूक एवं आलोचनात्मक व्यक्तित्व का विकास नहीं करते हैं तो यह प्रजातंत्र के मूल ढाँचे को ही कमजोर बना सकता है. वर्तमान में विश्व के कई देशों में बढ़ते उत्पीड़न के पीछे कहीं न कहीं शिक्षा द्वारा इस महत्वपूर्ण लक्ष्य को प्राप्त करने में उसकी विफलता ही है. अतः क्रिटिकल पेडागाज़ी की प्रासंगिकता वर्तमान के परिदृश्य में और बढ़ जाती है. 


Sunday, 17 April 2022

Rationalism

Rationalism  



Philosophers such as Descarte, Liebniz, etc were rationalist and considered that true knowledge is a-priori knowledge. A prioi knowledge is that which has it's source in reason alone. It is unlike the empiricism who consider true knowledge as being a-posteriori. The question now arises that is there no element of a prior knowledge in science, where a priory knowledge is the knowledge that the rationalist claim as the real knowledge. 

Rationalism believes in apriori knowledge

A prior knowledge stands for knowledge that has it's source in reason alone. Mind with it's reasoning capacity can lead to true knowledge that do not require sensory confirmation. Such knowledge are certain as well as generalized. 

Rationalism propounds Deterministic knowledge

Eempirical knowledge is probabilistic in nature. Empiricist method is inductive and inductive process leads to probabilistic knowledge. Rationalist method uses deduction and deduction leads to certain knowledge. There are no exception since exception leads to contradiction.


ChiSquare Test

Chi Square https://docs.google.com/presentation/d/12d-tesJLFvRWe0S6McerPgghPcd_ctF16StvS-BFB8Q/edit?usp=drivesdk