Thursday, 18 March 2021

Knowledge n Curriculum: Introduction

                                                  Knowledge and Curriculum
                                                          ज्ञान एवं पाठ्यचर्या
                                                                                                          Ajeet Kumar Rai


 ज्ञान मानव सभ्यता की एक अनमोल धरोहर है। चार हज़ार वर्षों से अधिक के मानव सभ्यता के इतिहास में ज्ञान के पूर्वोत्तर संवर्धन द्वावर विकास होता आया है एवं वर्तमान में मानव सभ्यता में ज्ञान का एक समृद्ध एवं विस्तारित भंडार नियोजित और संगठित है जिसकी वृद्धि में निरंतरता एक विशिष्ट गन है। यद्यपि ज्ञान का एक सर्वसम्मत परिभाषा प्राप्त करना दुष्कर कार्य है, परंतु इस विवेचना को आगे बढ़ने के लिए यह मान लिया जाता है कि ज्ञान व्यक्तिगत अवधारणा के रूप में जन्म लेते हुए वस्तुनिष्ठ कथनों के रूप में स्थापित होता है। ज्ञान ज्ञानेन्द्रियों एवं वाह्य संसार के अन्तर्क्रियाओं के माध्यम से व्यक्ति के संचेतना में उपजता है अतः यह व्यक्तिनिष्ठ प्रक्रिया है। मानसिक स्तर पर विश्लेषण एवं तर्क के द्वारा यह पुनः सम्प्रेषित होता है एवं अंतर व्यक्ति (intersubjective) सम्मति होने पर इसे वैद्य रूप से स्वीकार कर लिया जाता है। यही अंतर वैयक्तिक सम्मति इसे वस्तुनिष्ठता भी प्रदान करती है।
     ज्ञान का संसार अति विस्तारित है एवं इस विस्तार का किसी भी सार्थक प्रयोजन (जैसे कि शिक्षण अधिगम) हेतु उसका उपयोग दुष्कर हो सकता है जबतक की उसे किन्ही व्यावहारिक निकषों(criterion) के आधार पर संगठित एवं नियोजित न किया जाए। ज्ञान के इसी व्यावहारिक समस्या के निदान हेतु ज्ञान का वर्गीकरण अनिवार्य हो जाता है। यहां इस बात को समझना आवश्यक है कि ज्ञान का वर्गीकरण एक कृत्रिम मानव प्रयास है जिसके द्वारा वह अपने प्रयोजन के लिए ज्ञान को विभिन्न क्षेत्रों में वर्गीत करता है। मूलतः ज्ञान का स्वभाव समग्रतः का है। Knowledge is to be seen se a holistic concept. प्रयोजनवाद के इस सिद्धांत पर आधारित ज्ञान के वर्गीकरण के माध्यम से शास्त्र (Discipline) की प्राप्ति होती है। इस प्रकार से हमें ज्ञान एवम शास्त्र में अंतर्निहित संबंध प्राप्त होता है। इस प्रकार का वर्गीकरण ज्ञान के शिक्षण, अधिगम एवं शोध के माध्यम से उसके संवर्धन में सहायक होता है।
       पुनः शिक्षा प्रणालियों के तहत शिक्षण अधिगम एक अति महत्वपूर्ण समामाजिक प्रयोजन है जिसे कोई भी मानव समाज नकार नहीं सकता है, यद्यपि शिखा को वह औपचारिक या अनौपचारिक रूप से संकल्पित कर सकता है। शास्त्र इस शिक्षण अधिगम कार्य हेतु आवश्यक विषयवस्तु प्रदान करते है। ज्ञान का वर्गीकरण इस शिक्षण अधिगम के कार्य को अधिक सुसंगठित एवं सुव्यवस्थित बनाता है एवं शिक्षा के प्रभावी प्रबंधन को सुनिश्चित करता है। परंतु शिक्षण अधिगम के लिए विभिन्न शास्त्रों में कूट सांकेतिक(coded) ज्ञान का विभिन्न स्तरों पर निरूपण एवं रूपांतरण आवस्यक होता है। चूंकि शिक्षण अधिगम विद्यार्थियों पर केंद्रित होता है एवं विद्यार्थियों के विकास के भिन्न भिन्न चरण होते हैं, अतः यह आवश्यक है कि ज्ञान , उसके सम्प्रेषण की विधियां एवं इस सम्प्रेषण हेतु आवश्यक वातावरण इत्यादि का नियोजन भिन्न भिन्न स्टार पर किया जाए। इस प्रकार से हमारे सामने पाठ्यचर्या की संकल्पना प्रस्तुत होती है। पाठ्यचर्या को शास्त्रीं में वर्गीत ज्ञान के सम्प्रेषण हेतु बनाये गए नियोजन के रूप देखा जा सकता है।
एक शिक्षक मात्र एक शिक्षक नहीं होता है अपितु वह किसी निश्चित विषय का शिक्षक होता है। यह कल्पना करना कि शिक्षक विषय स्वतंत्र होता है एक मिथक है। शिक्षक किसी विषय विशेष का शिक्षक होता है ( यद्यपि अपने विषय का दूसरे विषयों के साथ अंतरसंबंधों की समझ का होना भी उसके लिए आवश्यक है)। एक शिक्षक के रूप में यह आवश्यक है कि शिक्षक ज्ञान के मूल अवधारणाओं के साथ साथ उसके वर्गीकरण के प्रयोजन एवं वर्गीकरण से उत्पन्न विषय या शास्त्र के प्रकृति से परिचित हो एवं विषय के विभिन्न स्तरों पर होने वाले शैक्षणिक रूपांतरण (पाठ्यचर्या के रूप में) के विभिन्न पहलूँ से परिचित हो।
         ज्ञान एवं पाठ्याचर्या नामक कोर्स का मूल अवधारणा इन्हीं तीन मुख्य संकल्पनाओं (ज्ञान, शास्त्र एवं  पाठ्यचर्या) एवं उनके अन्तरसम्बन्धित प्रक्रियाओं पर आधारित है।

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