हिल्डा ताबा प्रतिमान
इनका प्रतिमान टाइलर के प्रतिमान का संशोधित रूप है जिसे जमीनी स्तर (Grassroot Level) का प्रतिमान भी माना जाता है। यह प्रतिमान कुछ मूल मान्यताओं पर आधारित है जैसे कि
मान्यताएँ
• पाठ्याचार्य पुनर्निर्माण की प्रक्रिया एक लंबी चलने वाली तार्किक और क्रमबद्ध प्रक्रिया है। (इस मान्यता के आधार पर इनके प्रतिमान को प्राविधिक प्रतिमान की श्रीखले में रखा जाता है)। अतः यह प्रतिमान टाइलर के रेखीय प्रतिमान या पाठ्यचर्या विकास के रेखीय पद्धति को स्वीकार नहीं करते हैं।
• यह प्रक्रिया नीचे से ऊपर की ओर चलती है ना कि ऊपर से नीचे कि ओर जैसा कि टाइलर का प्रतिमान प्रस्तुत करता है।
• पाठ्यचर्या पुनर्निर्माण प्रजातांत्रिक सहभागिता के सिद्धांत का पालन करते हुए किया जा सकता है जिससे कि इस प्रक्रिया में शिक्षक का महत्वपूर्ण भूमिका होने चाहिये एवं इस प्रक्रिया में वे में रूचि भी रखते हैं और इस कार्य हेतु वे कुशल भी माने जा सकते हैं।
प्रतिमान
हिल्डा ताबा पाठ्यचर्या पुनर्निर्माण को सात सोपान वाले प्रक्रिया के रूप में प्रस्तुत करते हैं जो कि निम्नलिखित हैं
1. विद्यार्थियों के आवश्यकताओं के विश्लेषण (Need Analysis)
* विद्यार्थियों के आवश्यकताओं का विश्लेषण करना इस प्रतिमान का प्रथम सोपान होता है।
* इस कार्य को शिक्षक बेहतर ढंग से कर सकते हैं क्योंकि वे विद्यार्थियों के सीधे संपर्क में होते हैं।
उदाहरण के लिए किसी शैक्षिक संदर्भ में विश्लेषण द्वारा यह ज्ञात होता है कि विद्यार्थियों में आई0सी0टी0 कौशलों को विकसित करने की आवश्यकता है।
2. उद्देश्यों के निरूपण
आवश्यकता निर्धारण के उपरांत उससे संबंधित उद्देश्यों को निरूपित किया जाता है।
यही उद्देश्य आगे के सोपानों को भी निर्धारित करते हैं।
3. विषयवस्तु का चयन
उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उपयुक्त विषयवस्तु का चयन किया जाता है।
विषयवस्तु चयन में विद्यार्थियों के परिपक्वता स्तर और उनके पूर्व ज्ञान को ध्यान में रखा जाता है।
4. विषयवस्तु का संगठन
विषयवस्तु के चयन के बाद उसके संगठन से संबंधित निर्णय लिए जाते हैं।
पुनः विद्यार्थियों के मानसिक स्तर, उनके रुचि और उनके पूर्व ज्ञान के साथ-साथ विषयवस्तु की प्रकृति को भी ध्यान में रखते हुए संगठन संबंधित निर्णय लिए जाते हैं।
5. अधिगम अनुभवों का चयन
चयनित एवं संगठित विषयवस्तु के कक्षा कक्ष सम्पादन हेतु उनको उपयुक्त अधिगम अनुभव में रूपांतरित किया जाता है।
इस प्रक्रिया में अनुदेशन विधियों का विश्लेषण, विद्यार्थियों के सामाजिक सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का आकलन और संसाधनों की उपलब्धि इत्यादि विषयों का विश्लेषण कर उचित निर्णय लिये जाते हैं।
6. अधिगम अनुभवों का संगठन
इस सोपान के अंतर्गत नियोजित अनुभवों के संगठन को सुनिश्चित किया जाता है।
विभिन्न संगठन सिद्धांतों (जैसे कि मनोवैज्ञानिक अथवा तार्किक) के विषय मे निर्णय लिए जाते हैं।
यह भी ध्यान रखा जाता है कि अनुभवों के संगठन सिद्धांत और विषयवस्तु के संगठन सिध्दान्त एक दूसरे के पूरक हों।
7. मूल्यांकन
इस सोपान में पाठ्यचर्या निर्णयों जैसे कि विषयवस्तु चयन, अधिगम अनुभव का नियोजन इत्यादि के उपयुक्तता, सार्थकता और उनके प्रासंगिकता के संदर्भ में पता किया जाता है जिसके लिए विभिन्न प्रकार के मूल्यांकन प्राविधियों के विषय में निर्णय लिए जाते हैं।
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